सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

लम्हें...


कुछ खूबसूरत से ज़िंदगी से भीगे लम्हें लरजते हाथों की छुअन से मदहोश होते लम्हें आवारा से कमजोर से लम्हें तेरी गुदगुदी से काँपते लम्हें इक दूजे की तलाश में गुमशुदा हुए लम्हें तेरे इंतजार में जीते लम्हें उलझी जुल्फों में सुलझे लम्हें रात की स्याही से लिपटे लम्हें ख्वाहिशों की बारिश में नम हुए लम्हें जिंदगी की थाली में पेट भरते लम्हें राह चलते इक दूजे से टकराते पूरे चाँद की रातों में ख्वाब सजाते लम्हें सुर्ख रुखसारों से अठखेलियाँ करते जिंदगी के झुमकों से नजर चुराते लम्हें जिंदगी से छलकते मेरे तुम्हारे लम्हें आईसक्रीम से पिघलते दौड़ती भागती सड़कों पे आवारा फिरते लम्हें तेरे चश्मे से करीब आते लम्हें...

बुधवार, 7 मार्च 2012

समय

समय साक्षी है
कौन चुप था
और कौन वाचाल
शब्द मौन से
अधिक मुखर थे
हवा में तैरती ध्वनियों
और ऊर्ध्वपातित होती
कामनाओं के बाद
शेष क्या है
इक बंद मुठ्ठी
और उससे फिसली हुई
समय की रेत...

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

फागुन

कितनी दिलकश हैं
फागुन के मदालस झोंके
पछुवा और पतझड़ का
रिश्ता भी तो
कुछ ऐसा ही है
सूखते अधरों पे
जन्मे गीत की तरह...

रविवार, 12 फ़रवरी 2012

मौसम

जाती रुतों को
रुकने के लिये
कोई नहीं कहता
नये मौसमों का इंतजार
सब करते हैं
अब देखो न...
तुम सर्दियाँ लेकर आई थी
और अब
शरद तुम्हारे साथ जा रहा है
मुहब्बतों की कहानियाँ भी
खूबसूरत मगर
इश्तेहार सरीखी होती हैं
मौसमों की तरह
इसके किरदार भी
बदल जाते हैं...

ज़िंदगी...

तुम कुछ ऐसे मिलती हो
मेरे सब्र का इम्तेहां लेती हो
सावन के आने से पहले
ख्वाहिशों की बारिश में
तुम भींग जाती हो
ख्वाबों के दस्तक से पहले
तुमको नींद आ जाती है
तुम कुछ ऐसे मिलती हो
ज़िंदगी...

गुड़गाँवा

कंक्रीट के जंगलों के दरम्यां
रात के अंधेरे में
नियॉन लाइट्स की रोशनी से
तरबतर इक शहर
बसता है...
जाने कैसे लोग
इसको गुड़गाँवा कहते हैं
गुड़ जैसा मीठा
कुछ भी तो नहीं है यहाँ
पता नहीं
शहर के किस कूचे में
गुड़ मिलते होंगे
दफ्तर, मॉल और
माचिस के डिब्बे सरीखे घर
इन तीन किनारों के बीच
दौड़ती भागती सड़कों पर
आवारा फिरता...
धूल से धुला गुड़गाँवा
दोपहर के वक्त भी
गोधूलि का एहसास कराता
गुड़गाँवा

जिंदगी क्यूं तेरा ऐतबार करें...

तुझे नजर भर के देखें
साँसों से गुजर जाने दें
ज़िंदगी क्यूं तेरा ऐतबार करें
गुलों में रंग भरें
बहारों का इंतजार करें
जिंदगी क्यूं तेरा ऐतबार करें
सहर की धूप में भींगे
शब का इंतजार करें
जिंदगी क्यूं तेरा ऐतबार करें
शहर के सब रास्ते
तेरे कूचे को जाते हैं
कि मौत से पहले
वहीं मेरा मजार बने
जिंदगी क्यूं तेरा ऐतबार करें
तुमसे मुहब्बत करें
तुम्हीं से गिला करें
जिंदगी क्यूं तेरा ऐतबार करें...

नया साल...

तुम्हारे जाने के साथ
बहुत कुछ गुजर जायेगा
मैं चाहता तो हूँ कि तुम्हें
मुस्कुराकर अलविदा कहूँ
पर दीवार से अटका
कैलेंडर बहुत याद आयेगा
बीती रुतों की शीरी बातें
और माज़ी का रुसवाईयाँ
हो सके तो सबको तुम
अपने साथ ले जाओ
हम नये बरस से
नई सी मुहब्बत करेंगे
तुम्हारा जिक्र करेंगे
तुमको याद करेंगे
उनमें जीयेंगे, मरेंगे
तुम्हारे जाने के साथ
बहुत कुछ गुजर जायेगा...

बुधवार, 28 सितंबर 2011

मैं और तुम

सुविधा और दुविधा
की राजनीति में उलझा
मेरा मैं
और
तुम्हारा तुम
असहज प्रश्नों की कुंजिका में
संबंधों का गणित सुलझाता
मेरा मैं
और
तुम्हारा तुम
द्विघात के जटिल समीकरण जैसा
जोड़ घटा गुणा भाग पे टिका
मेरा मैं
और
तुम्हारा तुम

सोमवार, 10 जनवरी 2011

तुम...

तुम चुप रहती हो
मैं सुनता रहता हूं
ऐसे होती हैं बातें
तुम मुस्कुराती हो
मैं सोचता रहता हूं
ऐसे कटती हैं रातें